अब राहत पैकेज की जरूरत
 

प्रमुख औद्योगिक संगठन एसोचैम ने कोरोना महामारी की चपेट में फंसी अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सरकार की ओर से 14 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की जरूरत बताई है । एसोचैम का कहना है कि यह रकम चरणबद्ध तरीके से अर्थव्यवस्था के अलग अलग क्षेत्रों में डालना होगा , तब अगले कुछ महीनों में आर्थिक हालात नार्मल हो सकेंगे । दूसरी ओर कोंग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने भी प्रधानमंत्री मोदीजी को पत्र लिख कर एमएसएमई सेक्टर के लिए आर्थिक पैकेज की मांग की है जिससे आने वाले समय की आर्थिक मुश्किलों को समझा जा सकता है । वास्तविकता यह है कि कोरोना महामारी में दुनियाभर में दो लाख लोगों की मौत और 25 लाख लोगों के संक्रमित होने के बीच देश मे लॉक डाउन का एक महीना पूरा होने के बाद उद्योग जगत की आर्थिक बदहाली ,देश की पहले से ही सुस्त पड़ती आ रही अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी होने की आशंका सच होती जा रही है । यह भी सही है कि लॉक डाउन से जाम हो चुकी अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए अभी न सही तो हफ्ते-दो हफ्ते बाद ही सही ,उद्योग-कारखानों और कारोबार को चालू करना ही पड़ेगा । लेकिन मुश्किल जितनी दिख रही है ,उससे भी ज्यादा विकट है । देश की आधी से ज्यादा की बड़ी आबादी वाले गरीब लोगों की खरीद क्षमता खत्म हो चुकी है । ये रोज कमाने खाने वाले मजदूर ,रिक्शा , ठेला वाले ,फेरी-रेहड़ी वाले और विभिन्न कारखानों में काम करनेवाले श्रमिक हैं जिनके पास एक महीने के लिए राशन खरीदने लायक पैसा कभी नहीं होता । इसके अलावा असंगठित क्षेत्र में कारखाने-कारोबार चलाने वाले मिडिल क्लास की संख्या भी बहुत बड़ी है । देश का सबसे बड़ा खपतकर्ता समूह यही आबादी है जिसकी खरीद क्षमता लॉक डाउन में खत्म हो चुकी है । गरीब तबका तो भोजन जैसी बुनियादी जरूरत पूरी न होने पर पिछले दिनों देश के कई महानगरों में सड़क पर भी उतर चुका है । दूसरी ओर मिडिल क्लास के पास भी जो थोड़ा बहुत संचित बचा होगा ,उसे वह भोजन और दवा के अलावा किसी अन्य मद पर खर्च नहीं करना चाहेगा । इस प्रकार की स्थिति में लॉक डाउन के बाद भी क्या होगा ? कारखानेदारों के पास उत्पादन शुरू करने के लिए पैसा नहीं है और जनता के पास उत्पादन को खरीदने के लिए पैसा नहीं है तो अर्थव्यवस्था मांग और उत्पादन के दोहरे संकट की चपेट में है जो अपने आप मे काफी विकट है । इसके पहले मांग का अभाव ही अर्थव्यवस्था पर संकट के रूप में देखा जाता था । अतः अर्थव्यवस्था वेंटिलेटर पर है जिसे चलाने के लिए पैकेज रूपी बिजली अगर नहीं मिली तो मरीज का मरना तय है । जहां तक एसोचैम के सुझाव की बात है तो सुझाव ठीक है किंतु वर्तमान परिस्थितियों में इसे स्वीकार कर पाना सरकार के लिए संभव नहीं दिखता । पिछले कई सालों से आर्थिक विकास दर में निरंतर गिरावट से सरकार की राजस्व प्राप्तियों में भी पर्याप्त कमी आयी है अतः सीमित संसाधन देखते हुए 14 लाख करोड़ रुपया बहुत भारी रकम है । दूसरी बात यह कि एसोचैम उन बड़े उद्योग घरानों-कॉरपोरेट कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता है जिनके पास भारी पूंजी का ठोस आधार है । अतः उद्योग जगत का यह तबका लॉक डाउन जैसा झटका सहने में सक्षम है । दूसरी ओर सोनिया गांधी ने जिस एमएसएमई सेक्टर को राहत पैकेज देने की मांग की है ,वह वास्तव में राहत पैकेज का हकदार है बल्कि उसे अपना अस्तित्व बचाये रखने के लिए राहत पैकेज दिया जाना जरूरी है । इसलिए कि छोटी पूंजी और सीमित संसाधनों के बल पर चलने वाला यह सेक्टर लगभग 11 करोड़ लोगों को रोजगार दे कर कुल जीडीपी में लगभग 35 फीसदी योगदान देने वाला , देश की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है जिस पर लॉक डाउन की अवधि में प्रति दिन 30 हजार करोड़ रुपए की चोट पड़ रही है । इसलिए इस सेक्टर को बचाने के लिए सोनिया गांधी ने जो सुझाव दिए हैं ,वो सरकार को स्वीकार कर लेने चाहिए । इन सुझावों में 1 लाख करोड़ का वेज प्रोटेक्शन पैकेज , अगले कुछ महीनों के लिए कर्ज की किश्त में छूट और 1 लाख करोड़ के क्रेडिट गारंटी फंड के अलावा कॉमर्शियल बैंकों के जरिये कर्ज उपलब्ध कराना भी शामिल है । सरकार को इसलिए भी यह सुझाव स्वीकार कर लेने चाहिए क्योंकि देशभर में असंगठित क्षेत्र में लगभग 90 लाख एमएसएमई सक्रिय हैं जो देश की अर्थव्यवस्था को चलाने और मजबूती देने में मुख्य भूमिका निभाते हैं ।