अब कामगारों का संकट
 

देश की अर्थव्यवस्था पर से कोरोना संकट का दुष्प्रभाव नहीं हट सकेगा ,इसके अलग अलग कारण सामने आते जा रहे हैं । डेढ़ महीने लंबे लॉक डाउन ने अर्थव्यवस्था को झकझोर दिया है । उत्पादन कर्ता समूह मांग और उत्पादन ठप्प होने से परेशान ,सरकार से राहत पैकेज की गुहार लगा रहा है तो गरीब जनता भी रोजीरोटी बंद होने से सरकारी सहायता की प्रतीक्षा कर रही है । सरकार भी विभिन्न वर्गों के लिए राहत पैकेज तैयार करने में जुटी है और ऐलान भी शीघ्र कर देगी ।इसके बावजूद कारखानों के समक्ष कामगारों का जो संकट आने वाला है ,वह भी कोरोना की तरह अनूठा होगा । इसका कारण प्रवासी मजदूरों -कामगारों का यह संकल्प है कि-कम कमाएंगे,घर मे रोटी खाएंगे ,वापस नहीं जाएंगे । गुजरात,महाराष्ट्र, केरल,कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे सुदूरवर्ती औद्योगिक राज्यों में यूपी ,बिहार,छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा के करोड़ों प्रवासी मजदूरों को लॉक डाउन की अवधि में जो नारकीय यातना झेलनी पड़ी है ,उसने इनमें ऐसी दहशत और वितृष्णा पैदा कर दी है कि ये अब रूखी सूखी खा कर अपने गांव या निकटवर्ती शहरों में मेहनत मजदूरी कर लेंगे लेकिन लौट कर नहीं जाएंगे । अगर मानवीय संवेदना से देखा जाए तो इन प्रवासी मजदूरों के साथ वाकई में बड़ा अत्याचार हुआ । बिना सोचे विचारे अचानक के लॉक डाउन से कारखाने बंद हुए तो काम छिन गया और मालिकों-ठेकेदारों ने वेतन नहीं दिया । आवागमन के साधन बंद होने से श्रमिक जहां के तहां फंस कर रह गए । इस प्रकार की स्थिति में अगर उन्हें जिंदा रहने के लिए राशन भी उपलब्ध करा दिया जाता तो वे माथे पर गृहस्थी और कंधे पर बच्चे को बैठा कर सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गांव के लिए पैदल न निकल पड़ते । ये सारे असंगठित क्षेत्र के कामगार हैं ,इसलिए न तो इनके रोजगार की सुरक्षा है ,न पंजीकृत श्रमिकों जैसी कोई सुविधा सरकार या सेवायोजक से मिली तो काम की जगह टिके रहने का कोई आधार इनके पास नहीं था । अतः अब जब सारे प्रवासी मजदूर अपने मूल ठिकाने लौट जाएंगे तो जाहिर सी बात है कि लॉक डाउन खुलने के बाद बदतर हालात के कड़वे तजुर्बे के कारण कोई कामगार वापिस नहीं लौटेगा तो उत्पादन और उत्पादकता को जबरदस्त धक्का लगना निश्चित है । इसलिए अब जरूरत इस बात की है कि उद्योग के आधार पर (इंडस्ट्री वाइज ) इन असंगठित कामगारों का पंजीकरण किया जाए और उन्हें जॉब सिक्योरिटी के साथ सोशल सिक्योरिटी भी दी जाए अन्यथा उद्योगों के लिए कामगारों का जो भीषण संकट पैदा होगा वह आर्थिक विकास के मार्ग की सबसे बड़ी रुकावट बनेगा ।