वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार को लघु उद्योगों , कर्मचारियों , रियल इस्टेट ,और बिजली वितरण कंपनियों के लिए जो करीब छह लाख करोड़ के कर्ज का ऐलान किया है वह मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदीजी द्वारा कोरोना से ध्वस्त पड़ी अर्थव्यवस्था मे प्राण फूंकने के लिए घोषित 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा का हिस्सा है । हालांकि इसमे रिजर्वबैंक द्वारा दी गयी आठ लाख करोड़ की वो मौद्रिक सहायता भी शामिल थी जिसे राहत पैकेज का हिस्सा नहीं माना जा सकता क्योंकि रिजर्वबैंक को इस तरह का कोई राहत पैकेज देने का अधिकार नहीं है और आजतक ऐसा हुआ भी नहीं । कायदे से तो इसमे सरकार द्वारा 25 मार्च को घोषित 1.7 लाख करोड़ का पैकेज भी नहीं शामिल करना चाहिए था क्योंकि वो तात्कालिक राहत के लिए था ,यद्यपि उसका भी विवरण अभी सार्वजनिक होना बाकी है फिर भी शेष बचे 10.3 लाख करोड़ का यदि युक्ति संगत वितरण हो सके तो आर्थिक सुस्ती काफी हद तक टूट सकती है । अतः बुधवार को जब राहत पैकेज का विवरण देने के लिए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण टीवी पर प्रगट हुई तो मुझे एक बात समझ मे आयी और अच्छी भी लगी-एमएसएमई के लिए 3.70 लाख करोड़ की राहत जिसमे 3लाख करोड़ बिना गारंटी कर्ज ,20 हजार करोड़ रुपये का फंड फंसे कर्ज वाले उद्योगों को और 50 हजार करोड़ का पूंजी प्रवाह बढ़ाया जाएगा । इसी के साथ सरकार ने जिस तरह से एमएसएमई के दायरे में बदलाव कर दिया है ,वह भी बड़ी कारीगरी वाली बात है । मसलन अब सूक्ष्म उद्योग में 1 करोड़ की निवेश और 5 करोड़ तक की टर्न ओवर , लघु में 10 करोड़ की निवेश और 50 करोड़ की टर्न ओवर तथा मध्यम उद्योग में 20 करोड़ की निवेश और 100 करोड़ की टर्नओवर सीमा निर्धारित करने से इस राहत पैकेज का बड़ा हिस्सा भी बड़े खिलाड़ियों के पास जाना पक्का हो गया है ,वास्तविक पात्रों को जो थोड़ा-बहुत ,बचा खुचा मिल जाये ,उसी में संतोष करना पड़ेगा । एक बात और भी खटकने वाली है कि सरकार कर्ज बांटने के लिए एनबीएफसी (गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों ) को क्यों कर्ज देती है , क्या ये कंपनियां सरकारी बैंकों से ज्यादा अच्छी तरह से कर्ज बांटती हैं ? मेरी आपत्ति दिवान हाउसिंग और आईएल एंड एफएस जैसी कंपनियों को लेकर है जो सरकारी बैंकों का हजारों करोड़ रुपया डुबो चुकी हैं लेकिन इन कंपनियों के मालिक सत्ता के करीबी और रसूखदार लोग हैं ,इसलिए इन्हें बार बार कर्ज दिए जाते हैं-बांटने के लिए । अन्यथा सरकारी बैंकों के पास कर्ज की आवश्यकताओं के आकलन के साथ कर्ज देने और वसूल करने का विकसित तंत्र है । अतः एनबीएफसी कंपनी को अगर कर्ज वितरण की जिम्मेदारी देनी जरूरी है तो वह सिर्फ सरकारी कंपनी होनी चाहिए । बहरहाल छोटे मंझोले कारखानों ,मतलब एमएसएमई में ताजे राहत पैकेज से कोई विशेष उत्साह नहीं दिख रहा किन्तु सरकार इसे सस्ते और आसान कर्ज का बड़ा तोहफा बता रही है तो हकीकत परखने के लिए थोड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी । लेकिन जहां तक मजदूरों को राहत मिलने की बात है तो यह राहत भी अगर मिली तो सिर्फ पंजीकृत मजदूरों को मिलेगी जिनका ईएसआईसी और ईपीएफ में नाम दर्ज है । असंगठित क्षेत्र के लगभग 46 करोड़ मजदूरों को किसी राहत की उम्मीद नहीं है क्योंकि सरकार के पास उनके आंकड़े नहीं हैं । इसके अलावा सरकार ने आमजनता की जेब मे 1 रुपया भी नहीं डाला जिसका सबसे बड़ा नुकसान यह होगा कि लॉक डाउन के बाद जब कारखाने शुरू होंगे तो उन्हें मांग के भीषण अभाव से जूझना पड़ेगा । इसीलिए सभी प्रमुख अर्थशास्त्रियों और कोंग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी आम लोगों की जेब मे रुपये डालने की मांग की थी कि इससे समाज मे जो खरीद क्षमता बनेगी ,वह सुस्त पड़े उद्योगों के लिए मांग का निर्माण करेगी ।
एमएसएमई के लिए आसान कर्ज