किसान और मजदूर किसी भी अर्थव्यवस्था की असली ताकत होते हैं , उनको बदहाल रख कर भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था कभी नहीं बन सकता । एक ओर राजीतिक रूप से अन्नदाता कहे जाने वाले और हकीकत में देश को खाद्य सुरक्षा में आत्म निर्भरता दिलाने वाले किसानों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है जो लगातार इस बात की शिकायत कर रहे हैं कि अप्रैल में सरकारी खरीद केंद्रों में गेहूं बेचने का भुगतान अभी तक नहीं मिला तो दूसरी ओर औद्योगिक श्रमिकों ,कामगारों की बदहाली सारी दुनिया मे चर्चा का विषय बन गयी है । वैसे तो देश के दिहाड़ी मजदूरों ,कारखाना श्रमिकों के जीवन की दशाएं कभी संतोषजनक नहीं रही किन्तु अब तक के लॉक डाउन के डेढ़ महीने की अवधि में उन्हें जिन नारकीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है ,वह वास्तव में काफी दर्दनाक है जिसकी ओर शायद देशव्यापी कोरोना संकट में उलझी सरकार अपेक्षित ध्यान नहीं दे सकी । इसीलिए महाराष्ट्र और गुजरात के औद्योगिक शहरों में कार्यरत लाखों प्रवासी मजदूरों को सड़क पर उतरना पड़ा । इनमें उत्तरप्रदेश ,बिहार ,छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के लोग बड़ी संख्या में हैं जो अपनी जमीन से हजारों किलोमीटर दूर ,अपनी मेहनत के बल पर अपने परिवार का जीवनयापन सुनिश्चित करने गए थे लेकिन लॉक डाउन के चलते काम छिन गया तो ठेकेदारों ने वेतन नहीं दिया तो सरकार ने उन्हें अपने घर नहीं जाने दिया । ऐसे में भूखे ,लाचार और साधनहीन मजदूरों की आवाज जब सरकार तक पहुंचाने वाला कोई नेता ,मीडिया वजूद में नहीं आया तो उनके पास अपना आक्रोश व्यक्त करने का और कोई साधन भी नहीं था , परिणाम स्वरूप कहीं हड़ताल की तो कहीं जाम लगाया । माथे पर गृहस्थी और कंधे पर परिवार लाद कर सैकड़ों मील दूर स्थित गांव जाने को सड़कों पर पैदल निकल पड़ना कोई हंसी खेल तो नहीं है ,सो इन जत्थों की मजबूरी समझना भी कोई मुश्किल काम नहीं है । हालांकि अब कुछ कुछ जगहों से ट्रेनें शुरू की गई हैं किंतु यह कहना होगा कि सरकार इन मजदूरों को अपने घरों तक पहुंचाने के लिए भी बहुत देर से सक्रिय हुई है । इधर यूपी में तीन साल के लिए सारे श्रम कानूनों को स्थगित करके श्रमिकों के हित के साथ अनदेखी की है । इस कदम को मास्टरस्ट्रोक बता कर कहा जा रहा है कि इससे इंडस्ट्री को ताकत मिलेगी किन्तु इस प्रक्रिया में मजदूरों,श्रमिकों को शोषण से बचाने का अगर पुख्ता इंतजाम नहीं किया गया तो यह मेहनतकश मजदूरों के साथ बड़ा अन्याय होगा । आज इस बात की सख्त जरूरत है कि असंगठित क्षेत्र के करोड़ों मजदूरों को अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा से जोड़ा जाए । पंजीकृत श्रमिकों को तो जैसे तैसे कुछ सरकारी योजनाओं का लाभ मिल भी जाता है किंतु असंगठित श्रमिक इससे पूरी तरह वंचित रह जाते हैं ,इसलिए कि सरकार ने कभी ये आंकड़े जुटाने की इच्छा ही नहीं दिखाई । 2011 की जनगणना के अनुसार भारत मे 45.36 करोड़ लोगों ने एक से दूसरे राज्य में पलायन किया । 2019 में जारी प्रवसन संबंधी रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र प्रवासियों के लिए सबसे आकर्षक स्थानों में से एक है । महाराष्ट्र में अन्य राज्यों से 5.74 करोड़ प्रवासी गए जिनमें 27.55 लाख यूपी के ,5.68 लाख बिहार के , 5.17 लाख राजस्थान के और शेष अन्य राज्यों के थे । ये भी हकीकत है कि यूपी ,बिहार,बंगाल,राजस्थान और उत्तराखंड जैसे पिछड़े राज्यों से दिल्ली ,हरियाणा,मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की ओर काम की तलाश में इसलिए पलायन करते हैं कि उनके मूल राज्य आर्थिक औद्योगिक रूप से पिछड़े हैं और सबके लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं करा पाते । देश की निरंतर आर्थिक तरक्की के लिए सरकार को इन करोड़ों मजदूरों के लिए ठोस योजना बनानी होगी ।
किसान,मजदूर की स्थिति सुधारना जरूरी