सरकार की ओर से सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सचिव गिरिधर अरमानै का यह कथन सराहनीय है कि सिर्फ एमएसएमई को ही नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था के हर सेक्टर के लिए एक व्यापक राहत पैकेज पर विचार हो रहा है जिसका कभी भी ऐलान हो सकता है । उन्होंने राहत पैकेज की मांग कर रहे ऑटोमोबाइल उद्योग के सबसे बड़े संगठन सियाम (सोसायटी ऑफ़ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चर्स ) इंस्टीट्यूट के सदस्यों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये भरोसा दिलाते हुए यह बात कही है जिससे निस्तेज पड़ी अर्थव्यवस्था में निश्चित रूप से नई चेतना का संचार होगा । किन्तु जिस तरह से राहत पैकेज में विलंब किया जा रहा है ,वह अर्थव्यवस्था के लिए घातक है । कोरोना संकट के चलते ध्वस्त हो चुकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए इस प्रकार के राहत पैकेज की जरूरत काफी दिनों से अनुभव की जा रही है और मेरी समझ मे इसका ऐलान लगभग 15-20 दिन पहले ही कर दिया जाना चाहिए था ताकि करोड़ों कर्मचारियों ,मजदूरों को अप्रैल का वेतन मिलना सुनिश्चित हो जाता । एमएसएमई सहित उद्योग जगत के लगभग सभी क्षेत्र सरकार से राहत पैकेज की मांग कर चुके हैं अतः अब इस बात की उत्सुकता से प्रतीक्षा रहेगी कि सरकार किस क्षेत्र के लिए कितना राहत पैकेज देगी ? वैसे ठप्प पड़ी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए राहुल गांधी ,रिजर्वबैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री एमएसएमई सेक्टर को पर्याप्त पैकेज देने के साथ 40 करोड़ अति गरीब लोगों को 10-10 हजार रुपये की नकद सहायता देने का सुझाव दे चुके हैं जो बिल्कुल सही सुझाव है । देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान को देखते हुए मैं भी एमएसएमई सेक्टर को पर्याप्त राहत पैकेज देने का निरंतर सुझाव दे रहा हूँ । इसलिए कि कृषि के बाद सर्वाधिक रोजगार देने वाले इस क्षेत्र में 90 लाख इकाईयां कार्यरत हैं जो 11 करोड़ लोगों को रोजीरोटी देने के साथ देश की कुल जीडीपी में 35 फीसदी का योगदान देने के साथ कुल निर्यात में भी लगभग 48 फीसदी हिस्सेदारी निभाती हैं । लॉक डाउन के चलते इस सेक्टर के समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है । शायद इसीलिए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थव्यवस्था में तेज सुधार की उम्मीद जताते हुए कहा है कि इस वर्ष मार्च और अप्रैल में सरकारी बैंकों ने 5.66लाख करोड़ के कर्ज आबंटित किये हैं जो लॉक डाउन खत्म होते ही वितरित किये जायेंगे किन्तु अगर इस कर्ज का बड़ा हिस्सा ,पहले से ही हजारों करोड़ के कर्ज पर कुंडली मारे बड़े उद्योगों को दे दिया गया तो उद्देश्य अधूरा रह जायेगा । फिर भी राहत पैकेज देने में विलंब नहीं होना चाहिए और अर्थव्यवस्था में तेज रिकवरी की उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए । इसलिए कि ध्वस्त हो चुकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में थोड़ा नहीं , बहुत वक्त लगेगा । लॉक डाउन खत्म होने के बाद कारखानों को काफी दिनों तक कर्मचारियों, मजदूरों की जबरदस्त कमी का सामना करना पड़ेगा । लॉक डाउन की अवधि में यूपी ,बिहार ,छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के गुजरात ,महाराष्ट्र और सुदूरवर्ती राज्यों में काम करने वाले लाखों मजदूरों को जिन बदतर हालात का सामना करना पड़ा है और मजबूरी में अपने घर लौटने के लिए जिन मुश्किलों से जूझना पड़ा है ,अब वे दुबारा जाने की बजाय अपने गांव में ही छोटा मोटा कैसा भी काम करके गुजारा करने की कोशिश करेंगे । ये सही है कि लॉक डाउन से उद्योग जगत को धीरे धीरे छूट मिलने लगी है और कुछ औद्योगिक गतिविधियां रेंगती दिखने लगी हैं किंतु जिस तरह से कोरोना वायरस पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को ठप्प कर चुका है उसे देखते हुए अर्थव्यवस्था में तेज रिकवरी की उम्मीद वास्तविक कम और काल्पनिक ज्यादा लगती है लेकिन पैकेज देने में जितना विलंब होगा ,स्थितियां उतनी ही ज्यादा जटिल होंगी ।
राहत पैकेज में विलंब घातक